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“विचित्र ख्वाब “

पहचान
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15-Suna-Hai-Kal-Ka-Mushaira

कल रात बड़ा ही विचित्र ख्वाब आया

हमें भी मुशायरे से न्यौता आया

सोचा लगना चाहिए टॉप का शायर

सिलवा लाया दरजी से  अचकन

मुशायरे में पहुंचे हम बनठन कर

वहां पहुँच दंग रह गए ये जानकार

सभी आज के शायर थे

वो पेंट कमीज में आये थे

सब हम को देख मुस्कुरा रहे थे

हम एक कोने में खड़े खिसियाय रहे थे

मुशायरा शुरू हुआ किसी शायर ने शेर पढ़ा

वाह वाह कहने का जैसे दौर चला

हर शायर वहां लाजवाब था

हम को छोड़ हर एक फनकार था

कोई नेताओं की बखिया उधेड़ रहा था

कोई पाकिस्तान के छक्के उड़ा रहा था

महफिल पुरे रंग में आई थी

तभी उदघोशक ने हम को आवाज लगायी थी

सोचा ऐसी गजल सुनायेंगे

लोग सदियों  न भूल पाएंगे

मगर ये क्या

मंच में जैसे ही पहुंचे

जेब से कागज़ का एक टुकड़ा निकला

ये क्या मैं तो जल्दबाजी में बिजली का बिल उठा लाया

तभी आवाजो का एक शोर उठा

मैं भी ख्वाबों से जाग पड़ा

खुदा न करे किसी दुश्मन को भी ऐसा ख्वाब आये

वो मुशायरे में गजल की जगह बिजली का बिल गाये

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