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कल रात बड़ा ही विचित्र ख्वाब आया
हमें भी मुशायरे से न्यौता आया
सोचा लगना चाहिए टॉप का शायर
सिलवा लाया दरजी से अचकन
मुशायरे में पहुंचे हम बनठन कर
वहां पहुँच दंग रह गए ये जानकार
सभी आज के शायर थे
वो पेंट कमीज में आये थे
सब हम को देख मुस्कुरा रहे थे
हम एक कोने में खड़े खिसियाय रहे थे
मुशायरा शुरू हुआ किसी शायर ने शेर पढ़ा
वाह वाह कहने का जैसे दौर चला
हर शायर वहां लाजवाब था
हम को छोड़ हर एक फनकार था
कोई नेताओं की बखिया उधेड़ रहा था
कोई पाकिस्तान के छक्के उड़ा रहा था
महफिल पुरे रंग में आई थी
तभी उदघोशक ने हम को आवाज लगायी थी
सोचा ऐसी गजल सुनायेंगे
लोग सदियों न भूल पाएंगे
मगर ये क्या
मंच में जैसे ही पहुंचे
जेब से कागज़ का एक टुकड़ा निकला
ये क्या मैं तो जल्दबाजी में बिजली का बिल उठा लाया
तभी आवाजो का एक शोर उठा
मैं भी ख्वाबों से जाग पड़ा
खुदा न करे किसी दुश्मन को भी ऐसा ख्वाब आये
वो मुशायरे में गजल की जगह बिजली का बिल गाये
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