Menu
blogid : 3085 postid : 52

पुरुषो में उत्तम मर्यादा पुरुषोत्तम ?

पहचान
पहचान
  • 56 Posts
  • 1643 Comments

हम सभी जानते है की श्री राम चन्द्र जी ही है जिनको की हम मर्यादा पुरुषोत्तम राम कहते है वो एक माँ के लिए आदर्श बेटे है, भाइयों में आदरणीय है और प्रजा के लिए न्यायप्रिय राजा

इन सब गुणों को मिल कर उनके लिए कहा गया है मर्यादा पुरुषोत्तम राम यहाँ तक सब ठीक है

मगर एक बात जो मुझे हमेशा अजीब लगी या बुरी लगी वो उनका सीता मय्या का अग्निपरीक्षा करने वाली बात मैं आज तक समझ नहीं पायी हूँ जिस अर्धांगनी की लिए रावन से युद्ध किया उसका यूँ अपमान क्यूँ

अग्निपरीक्षा जब हो ही गयी थी  तो  एक राजा प्रजा कि बात में कैसे आ सकता है | उनको उस धोबी कि बात इतनी ही बुरी लगी थी तो क्यूँ नहीं वो खुद वन में सीता मईया के साथ चल दिए अग्निपरीक्षा में क्यूँ नहीं वो सीता जी के साथ चले क्यूँ कि अगर सीता जी को रावन ने अपहृत  किया था तो राम चन्द्र जी के पास भी तो सुपनखा आई थी या सिर्फ स्त्री ही अपनी अग्निपरिक्षा देने कि हकदार है पुरुष नहीं |

सोचने वाली बात है कि जहाँ राम चन्द्र जी सीता जी कि अग्निपरिक्षा कि बात कर रहे है मगर सीता जी के मान सम्मान को वो उसी वक़्त तहस नहस भी कर रहे है एक राजा होने पर वो प्रजा के सामने एक आदर्श प्रस्तुत करना चाहते  है तो क्या एक पति होने के नाते उनको अपनी पत्नी के सामने भी तो आदर्श प्रस्तुत  करना था क्यूँ की जब राम चन्द्र जी को वनवास के लिए कहा गया था तो वही सीता मय्या ने पत्नी धर्म निभाया और राम चन्द्र जी के साथ वो भी वनवास गयी तो क्या वहीँ राम चन्द्र जी का ये धर्म नहीं था की वो भी अग्निपरीक्षा देते, अपने प्रजा को एक आदर्श रूप प्रस्तुत करते |

क्यूँ कि सात वचन निभाना सिर्फ स्त्री का कि कर्तव्य नहीं है पुरुष का भी सामान हक है अगर उस वक़्त अग्निपरिक्षा में सीता जी का साथ राम चन्द्र जी भी देते तो आज शायद नारी को ही अपमान का घूंट नहीं पीना पड़ता राम चन्द्र जी उस वक़्त ये फैसला भी कर सकते थे कि जो प्रजा अपने राजा और उसके परिवार का सम्मान नहीं कर सकती उससे तो उनका वनों में रहना ही बेहतर वे फिर से क्यूँ नहीं अपनी अर्धांगी के सम्मान के लिए वनों में लोट गए यही उनकी असली मर्यादा होती और पुरुषो में उत्तम मर्यादा पुरुषोत्तम होते

यहाँ मैं अपने दिल कि बात लिख तो रही हूँ   मगर अन्दर से डर भी है कहीं मैं किसी कि भावनाओं को ठेष न पहचाऊं  अगर मेरी सोच या विचार से किसी कि भावना को चोट पहुँचती है उसके लिए मैं क्षमा चाहूंगी मगर ये बात मुझे हमेशा से ही बुरी लगी है

Read Comments

    Post a comment