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मेरी अपनी सोच है और जो आप ने कहा वो आप की बहुत ही अच्छा जवाब दिया आप ने मगर मन अभी भी अशांत है कुछ सवाल है जो परेशां कर रहे है क्या उन का जवाब मुझे मिलेगा
१.जब रामचन्द्र जी वनवास जा रहे थे तो उन्होंने सीता जी को साथ न ले जा कर उनी छाया ही अपने साथ वन में लेकर गए थे और जब छाया ही उनके साथ थी तो सवाल ही नहीं उठता सीता जी की पवित्रता और अपवित्रता
२. मर्यादा पुरुषोत्तम राम के काल की एक अन्य कथा के अनुसार अहिल्या को देवराज इंद्र व चंद्रमा ने छला। जब ऋषि गौतम, इंद्र और चंद्रमा का तो कुछ न बिगाड़ सके, तो बेचारी नारी पर ही अपना ऋषि ज्ञान-विज्ञान का प्रयोग कर डाला और क्रोध में अहिल्या को पाषाण मूर्ति बना दिया। आखिर स्वयं भगवान राम ने पाषाण मूर्ति बनी अहिल्या को अपने चरणों का स्पर्श दिया, तब वह पुनः पवित्र हो नारी रूप में परिवर्तित हुई। माता सीता तो कई वर्षों तक श्रीराम के साथ रही, तो सीता कैसे अपवित्र रह सकती थी।
३.आप के अनुसार (इस का एक मात्र कारण यही था की उन्होने अपने ऊपर उंगली उठना स्वीकार किया किन्तु सीता पर कोई प्रश्न चिन्ह लगाए ये वो नहीं चाहते थे)अग्निपरीक्षा तब ली गयी थी जब किसी ने भी सीता मय्या पर अंगुली नहीं उठाई थी औरअपनी प्रजा के एक व्यक्ति द्वारा ये कहने पर उनको फिर से छोड़ा गया था सवाल ये है की जब अग्नि परीक्षा में सीता जी की पवित्रता साबित हो गयी थी तो क्यूँ उनका त्याग किया गया , सीता जी को कितनी बार अपमान का घूंट पी कर अपनी पवित्रता को साबित करना था |
४.उन्होंने अपना पुत्र धर्म निभाया और वनवाश काट के आये तो उनका ये धर्म नहीं था की वो अपनी गर्भवती पत्नी का ख्याल रखे अपने होने वाले पुत्रो का ख्याल रखें ये धर्म भी तो उन्ही का था |
और अंत में क्यूँ स्त्री पर ही अंगुली उठाई जाती है क्यूँ उनकी पवित्रता पर शक किया जाता है रामचंद जी द्वारा नहीं प्रजा या किसी भी आम इन्सान के द्वारा क्यूँ उसको कटघरे में खड़ा किया जाता है |
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