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आतंक का साया

पहचान
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बिखर गयी थी जिंदगी,

इधर उधर अनगिनत चिथडौ में

बिलख रही थी जिंदगी टूटे- फूटे किस्सों में

बिखरी हुई थी लाश वहां

अलग- अलग हिस्सों में

मातम मना रहा था अपना पराया

टूटे हुए रिश्तो में

ढूंढ़ रही थी आँखे वहां

जिंदा हो कोई  किसी हिस्सों में

तोडा था इंसानियत को जहाँ

मिल रही थी मानवता फिर उन्ही हिस्सों में

दौड़ रहा था कोई किसी को लेकर,

थाम रहा था हाथ अनजाने उस रिश्तो में

रो रही थी कई आँखे क्यूंकि

जिन्दा था अभी भी कोई  किसी के किस्सों में

आ रहा हूँ कह कर गया था,

क्या पता था आएगी उसकी लाश इतने हिस्सों में

२६/११ को जब मुंबई आतंक के साये में जी रही थी | सभी जगह से सिर्फ एक ही दुआए आ रही थी वहां फंसे लोग बच जाये | और हमारे जाबांज एन. एस. जी कमान्डोस  ने अपनी जान की परवाह किये बगैर कई मासूमों को बचाया | दुआए कबुल हुई मगर इन सब में कई सैनिक शहीद हुए अपने परिवार, शहर देश का नाम रोशन कर गए | मगर सत्ता में बैठे ये लोग इस गौरव को क्यूँ धूमिल कर देते है |
२६/११ की पहली बरसी पर प्रधानमंत्नी मनमोहन सिंह ने बड़ी भावुकता से कहा कि  हम कुछ भूलेंगे नहीं. लेकिन उन्हें किसी ने याद नहीं दिलाया कि हमलों के बाद महाराष्ट्र के जिस गृहमंत्नी का इस्तीफा लिया गया, उसे दुबारा उसी पद पर बिठा दिया गया. जाहिर है, हम भूल चुके हैं. या तो वह इस्तीफा एक राजनीतिक मजबूरी था या फिर मंत्नी की बहाली. यानी सरकार ने और पार्टी ने तब भी और अब भी जो फैसला किया, उसमें राजनीति की जरूरत ज्यादा रही, मुंबई का सवाल कम या सरोकार कम.
मुंबई जिस आतंक के साये में रही, जो दर्द  अपनों के खोने का है वो बस वो ही समझ सकते महसूस कर सकते है राजनितिक पार्टिया नहीं नहीं तो कसाब को अब तक फाँसी मिल गयी होती और कविता ककरे और विनीता कामटे और उन जैसे  शहीदों के परिवार के लोग की आत्मा को  कब तक ऐसे ही सताया जायेगा कब तक जनता की भावना के साथ खिलवाड़ किया जायेगा | राजनितिक पार्टिया जब तक देश का नहीं सोचेगी तब तक कोई न कोई कसाब बहार से या अफजल गुरु जैसा देश द्रोही ऐसे ही आतंक फैलाते रहेंगे और हम फिर से अपने को लोटा पीटा महसूस करेंगे |

शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले ।
वतन पर मरने वालों का यही आखिरी निशां होगा…
इससे ज्यादा अपमानजनक स्थिति क्या होगी की हमारे शहीदों के धूल स्मारक खा रहे है | सभी राज्य की सरकार कोई न कोई उत्सव में करोडो रूपए फूंक देती है मगर किसी शहीद की शहादत की तारीख इनको याद भी नहीं होगी | इन शहीदों के नाम से कोई पर्व होना चाहिए जिस दिन छोट्टी न हो मगर सब मिल कर उनको याद करे उनको नमन करे | इन शहीदों की तस्वीरों को भी समाचार पत्र में जगह मिले इनकी शहादत को याद किया जाये  उन शहीद के परिवार की तरह ही सभी देश वासियों को गर्व महसूस हो |


क्या वाकई इनकी चिताओं पर मेले लग रहे हैं |

मेरी भगवन से ये ही प्रार्थना है की भगवन उन सब को हौसला दे और सभी शहीदों को मेरा कोटि कोटि नमन है

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