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“कहीं दूर, बहुत दूर, बहुत दूर तक”

पहचान
पहचान
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तुम्हें देखते ही
धड़कने बढ़ने लगती है
और सुनाई देती है धडकनों कि आवाज
कहीं दूर बहुत दूर बहुत दूर तक
तुम्हें देखते ही
खुद-ब-खुद नजरें झुकाने लगती है
चली जाती है आँखों से नींद
कहीं दूर बहुत दूर बहुत दूत तक
तुम्हारे चेहरे का,
आकर्षण तुम्हारे चेहरे का
खींच ले जाता है मुझे
कहीं दूर, बहुत दूर, बहुत दूर तक
जानती हूँ मैं
मेरे नहीं हो सकते तुम
फिर भी जाना चाहती हूँ तुम्हारे साथ
कहीं दूर, बहुत दूर, बहुर दूर तक
तुम्हें हमसफर बनाने कि
तमन्ना है मेरी
क्या चलोगे मेरे साथ
कहीं दूर बहुत दूर, बहुत दूत तक

दीदी की डायरी से

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