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“कहाँ तुम चले गए”

पहचान
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सात जन्म का साथ निभाने को
लिए थे सात फेरे
किस तरह से हम जियेंगे
तुम बिन हम है अधूरे
रोशन किया  था जहाँ को मेरे
फिर क्या ये हो गया
साथ दिया था जिन रहो पर
तनहा क्यूँ फिर छोड़ दिया
हमकदम बने थे हम तुम
मंजिल एक पाने को
लडखडा रहा हूँ उन राहों में,
तनहा क्यूँ फिर छोड़ दिया
जन्म -जन्म का था अपना वादा
साथ निभाने का
फिर इस जन्म  में तुमने
साथ क्यूँ ये छोड़ दिया
शिकवा तुम से नहीं
किस्मत से लड़ रहा हूँ
साथ हमारा था कम या
मुझे को जीवन ज्यादा दे दिया
छीन  लिया है चैन मुझसे
उम्र भर का गम मुझको दे दिया
हमसफर को छीन मुझसे
तनहा मुझको क्यूँ छोड़ दिया
दूर करदी है मंजिल मुझसे
बीच राह में लाके क्यूँ तोड़ दिया
साथ हमारा था कम या
मुझको जीवन ज्यादा दे दिया

loneliness

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