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“सखी सईंया तोह खूब ही कमात है”

पहचान
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इस देश का गरीब खुश कब होता है
पांच वर्ष बाद चुनाव जब होता है
हर ऐरे गैर के भाषण में
इनका ही तो जिक्र होता  है
इनके लिए एक साथ कई

योजनाओ का शुभारम्भ भी खूब हो जाता है
देश का गरीब चुनाव के बाद राह ताकता रह जाता है

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यहाँ का गरीब कितना नासमझ और नादाँ होता है
पांच साल के बाद ये नजारा आम होता है
नेताओ को ऐसे ही नहीं बइमान कहा जाता है
गरीबो का राशन तो इनका ही परिवार खा जाता है

सरकारी  दुकानों में भी क्या खूब खेल खेला जाता है
राशन कार्ड उनका बनता है जो बोर्डर पार से आता है
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यहाँ का गरीब तो वहां भी ब्लेक में ही राशन पाता है

नेताओ के इस खेल में
हर बार वो ही ठगा जाता है
अपनी तक़दीरवो रामभरोसे पाता है

और इसी के साथ अंत में

प्याज के साथ रोटी वो बड़े संतोष से खाइ जात है
मगर  उसके लिए भी अब वो तरस सा जात है
इसी मज़बूरी में वो यही गुनगुनात है
सखी सईंया तोह खूब ही कमात है
मंहगाई डायन खाय जात है

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