पहचान
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मेरे आँचल में ही छुप के
मेरी डांट से बच जाती थी
मेरी चुनरी ओढ़ वो
अपना रूप सजाती थी
मेरे ही कदमो में पाँव रख
चलने को ललचाती थी
उंगली पकड़ के जब वो चलती थी
मेरे ही गुण वो गाती थी
आदर्श हूँ मैं उसकी
ये सोच के मैं इतराती थी
वक़्त बदला उम्र बदली,
सोच ने नया आकर लिया
मेरी बेटी मुझको अब
ओल्ड फैशन कहती है
साथ चलाना तो दूर वो मुझसे
बात भी नहीं अब करती है
डिस्को पब की रौनक बन वो
घर की मर्यादा भंग करती है
समझाने पर उसको
आँखे फाड़े तकती है
जाने किस चिड़ियाघर में फँस गयी हूँ
२१ वी सदी का कहती है
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