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मासूमियत खिलने से पहले, ही
मुरझा सी जाती है
बेटियों कि ख्वाहिशे अक्सर
रौंद दी जाती है
परवाज भरने से पहले
पर क़तर दिए जाते है
बेटियों के पंख अक्सर
नोच दिए जाते है
घर कि दहलीज लांघने से पहले ही
लक्ष्मण रेखा खींच दी जाती है
बेटियों के पैर में अक्सर
बेड़ियाँ डाल दी जाती है
प्यार का एहसास होने से पहले ही
हवस समझा दी जाती है
बेटियों के एहसास अक्सर
कुचल दिए जाते है
दुल्हन बनने से पहले ही
अस्वीकार कर दी जाती है
बेटियां अक्सर
पैसो से परखी जाती है
बेटियों कि ख्वाहिशे
रौंद दी जाती है
इसलिए लड़कियाँ
पैदा होने से पहले ही
मार दी जाती है
कुछ ऐसे सवाल हैं जिनके जवाब चाहिए.हम महिला दिवस तो मना रहे है मगर क्या सच में ये वक़्त सेलिब्रेशन का है ? यह हमें क्या हो गया है? लड़कियों के प्रति हमारे दृष्टिकोण में यह आत्मघाती परिवर्तन क्यों आ गया है? हम कहां जाकर रूकेंगे? लड़की होना गुनाह क्यों है? हमारी सामाजिक परिस्थियां इसके लिए कहां तक जिम्मेदार हैं कि हम संतान के रूप में लड़की नहीं चाहते? फिर ये झूठा सम्मान किस के लिए है ???????????
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