हाय री नारी तेरी किस्मत में बस रोना आया जो न समझ सके तुझ को उसने ही अबला कह डाला
खड़े मंच पर करते तेरी महिमा का गुणगान है घर पर होती इनके ही हाथो तू प्रताड़ना का शिकार है शोभा बस तो घर भर कि है नहीं करते तुझ पर ये कोई परोपकार नारी सशक्तिकरण का नारा दे ये नव राष्ट्र निर्माण करेंगे अपने ही हाथो फिर तुझको फिर से छलेंगे बाजारवादी सोच है इनकी बाजार में लाकर तेरी ही बोली लगा दी जायेगी आजाद ख्याल का कहकर लिव एंड relationship तक तू खडी कर दी जायेगी फिर एक दिन बाजारू कहकर तुझ को तजा फिर जायेगा क्यूँ छली जाती हो दिखावे कि आजादी में सीमा- रेखा लाँघ जाती हो आवेश भावावेश कि अंधी में रावन का है ये युग फिर न कोई राम आएगा परीक्षा हुई थी तब भी तेरी फिर सवालो के कटघरे में तुझको खड़ा किया जायेगा खो कर अपना नारी स्वरूप धर रही क्यूँ मर्द रूप यहाँ भी तेरा शोषण होगा तुझको न तेरा अधिकार मिलेगा जिस सम्मान के लिए तरसी हो उसको ऐसे न पाओगी अपने नारी रूप में ही आकश कि बुलंदी को छू पाओगी शक्ति रूपेण हो तुम शक्ति रूप में कब आओगी तुम को आजादी का नहीं सम्मान का अधिकार चाहिए नारी कि छदम काया नहीं सशक्त रूप और स्वाभिमान चाहिए अवसरवादी लोगो का असर बिन सोचे समझे ले रही हो अपने ही हाथो अपना चीरहरण कर रही हो दिखावे कि जिंदगी में खुद को ही क्यूँ छल रही हो
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