- 56 Posts
- 1643 Comments
पलकों कि चादर ओढ़े जब साँझ होती है
बूढ़े चाँद से कई बाते फिर तमाम होती है
कुछ तजुर्बे उनके और
कुछ कहानियां मेरी होती है
पूरी चांदनी जब छिटक जाती है
कच्चे रास्तो से होकर मेरे अंगना उतर आती है
तब बूढ़ा चाँद पीपल कि टहनियों से होते हुए
खिड़की में मेरी उतरता है
चांदनी कि छटा में बाते फिर तमाम होती है
गली कूचो से निकल के हम
खेत खलियानों कि कच्ची डगर पकड़ते है
दूर एक छोटे से टीले में पहुँचते है
रुककर वहीँ कुछ देर यूँ ही, बाते फिर तमाम होती है
वादा होता है फिर कल मिलने का
नए किस्से नयी कहानी गढ़ने का
अलसाई सी सुबह में फिर चुपके से
बूढ़ा चाँद मस्त बादलों संग उड़ता जाता है
इंतजार मुझे को भी रहता है
रात की अंगड़ाई लेती तन्हाई का
बूढ़ा चाँद भी मुन्तजिर रहता है
सुरमई साँझ और मुझसे मिलने का
मिलते है हम फिर चुपके से
छत चौबारो में कुछ देर वहां यूँ ही बाते फिर तमाम होती है
कुछ दुनियादारी के किस्से
कुछ मेरे सुख दुःख के हिस्से
साझा उससे मैं करती हूँ
धीरे से हंस देता है कभी वो
कभी काली घटा की ओट में
आंसू भी बहाता है
सुनकर मेरी परेशानियां
वो हैरानियाँ जतलाता है
कभी मेरी नादानियों में
लोट पोट हो जाता है
इस दुनिया से दूर वो बुढा चाँद मुझे भाता है
मेरी बाते सुनने को रोज रात वो चला आता है
Read Comments