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मेरा प्रथम प्रेम-पत्र

पहचान
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वैलेंटाइन डे आते है सबके चेहरे में मुस्कराहट सी खिल जाती सिर्फ कुछ संगठन को छोड़ के | ऐसी ही मुस्कराहट मेरे चेहरे में भी रहती है | अरे गलत अनुमान न लगाइए ये हँसी मेरी शरारत के कारण है | बात स्कूल के दिनों कि है | 9th क्लास में हमारा एक ग्रुप था | जिसको कि हम सूर्या ग्रुप कहते थे | अब वो ग्रुप कहाँ है पता नहीं अंतिम सांसे 10th में ही ले रहा था 11th तक आते आते उसका अंतिम संस्कार भी हो गया क्यूँ कि सभी ने स्कूल चेंज कर लिया था | सिर्फ मैं और मेरी बेस्ट फ्रेंड ही बचे थे उस स्कूल कि कैद में मगर मैं अपनी शरारत बता रही थी |
हमारे ग्रुप में एक लड़की थी जिसको न मैं पसंद करती थी न वो मुझको | पढने में वो अच्छी थी | मगर वो मुझे घमंडी लगती थी या शायद मैं उससे चिढती थी इस लिए ऐसा मुझे लगता था | फी डे वाले दिन हमारा ग्रुप किसी न किसी के घर लंच में जाता था | अब ऐसे ही एक फी डे को उसके के घर कि बारी थी | मैंने प्लान बना लिया था कि नहीं जाउंगी | मगर दोस्तों कि कसमे और गिले के आगे एक न चली और मैं उस के घर सभी के साथ पहुँच गयी | जितना वो शो करती थी | उतना ही उसका परिवार अच्छा था | उसकी मम्मी बहुत प्यार से मिली |
उसके घर जाते हुए कुछ ऐसा घटा जिसने मेरे को शरारत करने के लिए उकसा दिया | हुआ यूँ कि हम सब बातें करते हुए जा रहे थे | उसका घर आर्मी एरिये में था तो वहां बहुत कम लोग ही दिख रहे थे | उसका घर आने वाला ही होगा जब कुछ क्वाटर्स से पहले एक क्वाटर के बहार एक लड़का कुछ पढ़ रहा था | उसको देखते ही हमारी अभिन्न मित्र का चेहरा हया से लाल हो गया | और मुस्कराहट खिल गयी | कहते है न इश्क और मुश्क छुपाये नहीं छुपते | यहाँ भी वो ही हाल था | ये बात मैंने ही नहीं ग्रुप कि सभी लड़कियों ने महसूस कि थी | हमने एक साथ उसको छेड़ना शुरू कर दिया |
अब वो बेचारी न न करते करते अपनी पसंदगी का इजहार कर गयी | शब्द कुछ यूँ थे | जैसे वो नहीं लड़का उन पर मारता है | जब कि हमने जो बात नोट कि थी वो ये कि लड़का तो हमारे वहां से गुजरने भर से अंजान सा बैठा हुआ था | अपने में मगन | और वो बोल रही थी कि आते जाते आँखों ही आँखों में बहुत कुछ बाते हुई है | जब भी यहाँ से जाती हूँ ये ऊँची आवाज में गाता है | कई बार मुझसे बात करने कि कोशिश कि है | अब आप कहेंगे इतनी भीड़ को देख कर बेचारा अंजान बनने कि कोशिश कर रहा होगा …………….तो मैंने जो बात और नोट कि वो ये कि लड़के ने हम सब कि तरफ देखा और फिर अपने काम में लग गया न आँखों में चमक न होटो पर मुस्कराहट न कुछ बैचेनी उस में ऐसे किसी लक्ष्ण कि नुमाइश नहीं कि थी | जो हमारी खासम खास दोस्त कर गयी थी | मामला एक तरफ़ा था और हमे मजा बहुत आ रहा था मेरे शैतानी दिमाग ने कुछ प्लान बना डाले |
उसके घर गए बहुत कुछ खाया, बहुत मस्ती कि और वहां एक बात और पता चली मेरी खास मित्र कि बहन उसकी चुगली लगाती है और इस लिए उनके बीच अकसर तकरार रहती है | बस मोहरा भी वहां मुझे मिल गया था |
हम सब वहां से वापस जब आ रहे थे | तो वो बेचारा अपने में ही ग़ुम ऊँची आवाज में गाना गा रहा था तो ये बात तो साफ थी ये उन महाशय का शौक मात्र था | न कि हमरी दोस्त के लिए | ग्रुप में बात करते हुए हमने तीर छोड़ दिया कि क्यूँ न इसका मजा लिया जाये | तीर निशाने में था सब ही तय्यार थे | बस हम सब को मौके का इंतजार रहने लगा |
हमने अपनी जिंदगी का पहला और आखरी लव लेटर लिखा जिसका मजमून कुछ यूँ था |

हेल्लो (यहाँ उस खास सहेली का नाम नहीं दूंगी क्यूँ कि आप सभी जानते है क्यूँ )बहुत दिनों से आप से कुछ कहना चाह रहा हूँ मगर मौका ही नहीं मिलता | कभी आप अपनी बहन के साथ होती है कभी अपनी दोस्तों के साथ और कभी अकेली तो उस दिन मैं ही कुछ कह नहीं पता |आप बहुत अच्छी लगती है मुझको | और शायद आप को भी मैं पसंद हूँ | क्यूँ कि आप कि आँखे बहुत कुछ बोलती है मुझसे | उस दिन आप अपनी सहेलियों के साथ थी आप बहुत प्यारी लग रही थी | आप बहुत अच्छी है आप कि हाँ में ही मेरी जिंदगी है | आप कि हाँ के इंतजार में आप का

ये प्रेम पत्र लिख तो दिया था बस अंदर ही अंदर डर भी था | कि कहीं फँस न जाये | मगर डर के आगे जीत है | आखिर वो दिन आ ही गया उसने बताया कि कल वो नहीं आएगी किसी के यहाँ जाना है | हमने चुपके से उसकी एक बुक निकाल ली और दिल ही दिल में बहुत खुश हुए और दुसरे दिन प्लान के मुताबिक वो प्यार में डूबा ख़त हमने उसकी बुक में रख दिया और उसकी प्यारी लाडली बहन को वो बुक दे दी
आप लोग क्या सोच रहे है कि हमने बहुत बुरा किया | नहीं बिलकुल नहीं आप सोच रहे क्या हुआ होगा …………….जी बिलकुल हम भी यही सोच रहे थे अब क्या होगा क्यूँ कि उसके अगले दिन रविवार था | और हम सब दोस्तों का सोच सोच के बुरा हाल था | सोमवार का दिन हम सब उसके आने का इंतजार कर रहे थे ये इंतजार भी कभी कभी बहुत मुश्किल होता है | प्रेयर कि लाइन में भी वो नहीं दिखी हमारी बेचेनी और बढ़ रही थी | तभी उसकी बहन को देखा पूछा वो क्यूँ नहीं आई तो पता चला उसकी तबियत खराब है | खैर एक दिन और बिता दुसरे दिन वो मुह सुजाये खडी थी सभी ने एक साथ पूछा क्या हुआ तेरे चेहरे में ये सुजन कैसी और हाथ पर नील का निशान पता तो था इस बेचारी का क्या हाल हुआ है मगर उसके मुह से उसकी दास्ताँ सुननी जरुर थी |
तो हुआ यूँ कि बहन के हाथ वो लेटर लगा वहां से वो मम्मी के हाथ लगा माँ ने पहले तो उसकी अच्छी खासी धुलाई हुई फिर वो लेटर ले कर माँ जी उस लड़के के घर उसकी धुलाई के लिए गयी उसने जब उसको कुछ लिखा ही नहीं था तो होना क्या था |
हां एक बात ये हुई उसने हमारी सखी से राखी जरुर बंधवा ली | मेरा छोटा मजाक ये रूप लेगा सोचा न था | खैर उसको मार के साथ एक भाई मिल गया था | और हमारे दिल में एक प्राश्चित रह गया था | फिर ऐसी शरारत न करने कि कसम खा ली थी | मगर कसमे तो खाई ही तोड़ने के लिए जाती है |

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