माँ आज आप से कई सारी बातें करने का मन हो रहा है !!! मन कर रहा है आप कि गोद मे सर रखूं और आप कि आंचल की छाँव मे सो जाऊं और आपकी नरम गर्म सी वो हथेली थपकियाँ दे मुझे, माँ आप से फिर से वो कहानियां सुनु, चाँद नगर की, जानती हो माँ मैं आज सोच रही थी कि क्या अब भी “चाँदनगर मे परियों का डेरा होगा या चाँद नगर तन्हा अकेला होगा”
क्योंकि अब वहां कई बरसों से गए नहीं आप का आंचल थामे उन परियों के डेरे मे भटके नहीं है न, तो मुझे लग रहा था कहीं वो परियां हमारा इंतजार करते करते गुम तो नहीं हो गयी न, या चाँद नगर मे भी यहाँ के जैसे खूब सारी बिल्डिंग तो नहीं बन गयी अगर ऐसा हुआ तो कैसे पहचान पाउंगी उस टीले को जहां परियां रहा करती थी |
इस लिए माँ उन कहानियो का सिलसिला फिर से आज मे शुरू करना चाहती हूँ | सुनाओगी न माँ फिर से वो कहानियां
अरे माँ एक बात तो पूछना भूल ही गयी ……………… वो मेरी सुनहरी बालो वाली गुड़िया का क्या हुआ ???????? उसके लिए अब भी आप नए कपड़े सीती हो न !!!! कहीं वो बदरंग सी तो नही न उस बक्से मे, अच्छा सुनो, सुनो ना , माँ !!! उस बक्से मे सबसे नीचे एक पुरानी डायरी है ………………… आपने वो पढ़ी कभी !!!!! माँ आप हमेशा शिकायत करती थी कि कुछ बताती नहीं हूँ, जब देखो डायरी मे सर दिए रहती हूँ |
माँ आज आप वो पढ़ना उसमे आप कि यादें संजोये हूँ |
माँ आप के जाने के बाद कोई नहीं जिसने हमें कहानियां सुनाई हो, क्योंकि जिंदगी कि तल्ख हक़ीक़तें नए क़िस्से जो सुनाने लगी थी | कोई नहीं था माँ ! !! जब हम रोते थे तो आप गले से लगा कर पुचकारती थी तो वो नदियों का उफान अपने चरम मे आ जाता था, आज इन नदियों मे इतने बाँध है कि कभी छलकने की चेष्टा ही नहीं करते ………………. आपके जाने के बाद जिंदगी बहुत तेज रफ़्तार भागी है कई बार इस रफ्तार से सर चकराया है हमने खुद को थामने की कई -कई नाकाम कोशिशें भी की है मगर हर बार आप को पुकार के खाली आवाज़ों के जंगल मे भटक के लौट आये और फिर से उन्ही रफ़्तार मे शामिल हो गए है |
माँ आप जानती थी न कि कितना डर लगता था हमको अंधेरे से पूरी रात आप से लिपट के बेफिक्र से सो जाया करते थे मगर माँ आप ये नहीं जानती होगी आप के जाने के बात अंधेरो मे कई साये हमारे आस पास मंडराते है पूरी पूरी रात ख़ौफ़ मे गुजार देते है अंधेरे से तो डरना कब का छोड़ दिया मगर ये साये हमें दिन कि रौशनी मे भी डराने लगे है ……………. बताओ न माँ हम कैसे अकेले इनका सामना करे |
माँ आप अपने साथ हर जगह मुझे ले कर जाती थी याद है न चाहे नानी के घर हो या मंदिर या फिर बाजार ही क्यूँ न हो हर वक्त साये कि तरह आप अपने साथ रखती थी फिर क्यूँ इन खौफनाक सायो के बीच मुझे छोड़ के चली गयी हो क्यूँ नहीं अपने साथ ही मुझे भी लेकर गयी | थक गयी हूँ मैं सफर करते करते तेरे आंचल कि छाँव भी नसीब नहीं , भटक गयी हूँ मैं इन भूलभुलैया रास्तों का सफर करते करते मैं अब और सफर नहीं कर पाउंगी यहाँ
माँ आज फिर इन आवाज़ों के जंगल मे आप को पुकार रही हूँ ………… सुन रही हो न मुझे ……………….. रो तो नहीं रही माँ ………आप कि बेटी कमजोर पड़ने लगी है खुद को ढोते ढोते अब कुछ पल तो ऐसे मिलने चाहिए न कि जिसमे रुक के सुस्ता सकूँ |
माँ आज आप से कई सारी बाते करने का मन हो रहा है ………………………..सुन रही हो न
नोट: बचपन कि कुछ धुंधली याद को आप सब के साथ साझा कर रही हूँ |इस संस्मरण कि प्रेरणास्रोत मेरी सहेली है जिसके कि मम्मी पापा रोड एक्सीडेंट मे नहीं रहे थे और वो अक्सर अपनी नोट बुक मे अपनी माँ से बाते किया करती थी |
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