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प्यार से जियो और जीने दो

पहचान
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पश्चिमी दिखावा कहे या पश्चिमी चलन हर किसी बात के लिए एक दिन निश्चित कर दिया जाता है | वेलेंटाइन डे, मदर्स डे, फादर्स डे फ्रेंडशिप डे अलाना फलाना ढीमकाना डे भाई मेरी याददाश्त इन डे को याद रखने मे जरा कमजोर है तो इस अलाना फलाना ढीम काना मे आप को जो उचित डे लगे रख लीजिएगा
मैं अक्सर बात करते करते विषय से भटक जाती हूँ इस लिए ये मैं शुरुवात मे ही बता रही हूँ जिस टॉपिक से शुरुवात की है अंत भी उसी मे हो इसकी उम्मीद मत कीजियेगा
हां तो मैं इस पश्चिमी देन डे’ज की बात कर रही थी
इस विषय मे तो मैं सिर्फ एक डे को ही मानती और मनाती हूँ और बेसब्री से इंतजार भी करती हूँ पूरे साल उस एक दिन का खूब सारे गिफ्ट मिलते है| गलत अंदाजे मत लगाइए, ये मैं अपने जन्म दिवस बर्थ डे के विषय मे बोल रही हूँ | साल मे एक ही बार आता है तो इसी को मानना अच्छा भी लगता है वैसे यहाँ भी मैं थोड़ा अलग विचार रखती हूँ……………… अरे कभी भी सेलिब्रेट कीजिये इस दिवस को साल मे एक ही बार क्यूँ हर महीने को वो खास तारीख आती ही है न तो हर महीने उस तिथि को मानिए
सच मैं तो चाहती हूँ हर माह को अपना जन्मदिन मनाऊं मगर मेरी इस बात को सभी सिरे से ख़ारिज कर देते है जानती हूँ सब मतलबी गिफ्ट न देना पड़े तो बच रहे है | खैर जाने दीजिए नाराज़ क्यों हो रहे हो आप लोग,… कहा था न विषय से भटक जाती हूँ |
मेरी आदत है छोटी छोटी बातों मे खुश हो जाने की, कोई अगर नया पेन भी खरीदता है तो मैं इस खुशी मे भी पार्टी की डिमांड कर देती हूँ अब इस डिमांड को कोई विरला दिल वाला ही पूरा करता है वो अलग बात है |
मैं एक ज्ञानी जी से (ये शाही जी वाले ज्ञानी नहीं है अभी तक उनके दर्शन प्राप्त होने का सौभाग्य हमें नहीं मिला है ) ये ही बात बोल रहे थे कि ये डे मनाये जा रहे है तो इनका ओचित्य क्या है
तो ज्ञानी जी लगे अपने ज्ञान का बखान करने कि कोई एक खास दिन मनाने से उस व्यक्ति के प्रति अपनी भावनाये प्रदर्शित कि जाती है इससे दूसरे इंसान को आप के दिल मे क्या है पता चल जाता है…………
हमारी उन ज्ञानी जी से बहस हो गयी
ये सब तो फ़िजूल है क्या अपनी माँ को प्यार प्रकट करने का, आभार प्रकट करने का पूरे साल मे एक ही दिन निकलेगा या अगर किसी से प्यार हो जाए (लव एट फ़र्स्ट साइड वाला) तो वो पूरे साल अपनी भावनाओं को दबाये रखे कि भैय्या फलां दिन निश्चित है तो फलां दिन ही इजहारे मोहब्बत करेंगे या ये भी नहीं तो दो प्रेमी युगल पूरे साल तो चुप बैठे रहे और एक ख़ास दिन ही अपनी भावनाओं का आदान प्रदान करे |
मुझे ये बात समझ नहीं आती कि पूरे साल भर लड़ो मरो और एक रोज डे को जा कर फूल थमा दो
प्यार है तो है इसमें कोई ख़ास दिन चुन कर भावना का प्रदर्शन हो वो दिखावा ही हुआ न ………………… लीजिये मदर्स डे आ गया अम्मा आज हम बताते है आप कित्ता कुछ किये हो हमारे ख़ातिर ये लो इन सब के लिए तुच्छ सा तोहफ़ा
अरे साहब क्या पूरे साल इस मिश्री मिली बोली को नहीं अपनाया जा सकता ? ? क्या पूरे साल माँ के लिए छोटी मोटी तुच्छ भेंट नहीं लायी जा सकती ???? क्या पूरे साल उनको उनके किये के लिए आभार प्रकट नहीं किया जा सकता |
सच्चा प्यार और सच्ची भावनाए दिखावे की मोहताज नहीं होती है | साफ़ सीधे लफ्जो में कहे तो भावनाएँ एक दिल से दूसरे दिल तक बिना किसी दिखावे के पहुँच जाती है और ये जो माँ है न वो तो आप से सोते हुए चेहरे को देख के भी आप के दिल की बात पढ़ने का माद्दा रखती है फिर उसके पास जा कर एक जादू कि झप्पी दे दोगे बिना दिखावे के, बिना किसी बनावटी शब्दों के सिर्फ “माँ” भी कह दोगे न वो सब समझ जायेगी की आप अपना प्यार आभार प्रकट कर रहे हो सच्ची फिर देखना माँ प्यार से हाथ फेर के कहेगी “पगले”
माँ, सब समझती है रे
और प्यार सच्चा हो तो वो तो अपने आप को मनवा ही लेता है | उसमे दिखावे की जरूरत नहीं पड़ती |
इस ही तरह से कुछ सालो से महिला दिवस के भी खूब चर्चे सुनते आ रहे है आ गया आठ मार्च तो हल्ला होना शुरू हो जाता कि महिलाओं के प्रति आदर सत्कार की प्रक्रिया तेज हो जाती हर कोई महिलाओं के सम्मान मे दो शब्द बोलने से नहीं चूकता ………… सभी महिलाओं का इतना मान सम्मान आदर सत्कार कर रहे हो तो भैय्या ये भी बता ही दो कि अपमान कौन कर रहा है, कौन है जो महिलाओं से चिढता है, किस को एतराज होता है महिला बोस के साथ काम करने मे, कौन है वो जो लड़कियों की ड्राइविंग सेंस कि हँसी उड़ा के चला जाता है, वो कौन है जो महिलाओं से त्रस्त रहता है,
पिछले साल महिला दिवस मे मेरी और हमारे मित्र के बीच गलतफहमी हो गयी थी बात दोनों एक ही बोल रहे थे बस कहने का अंदाज अलग था | मेरा मानना ये है कि महिला दिवस मे चंद गिनी चुनी सक्सेसफुल महिलाओं का महिमा मंडित कर देने भर से या लिपि पुती महिलाओं का गुणगान कर देने भर से क्या महिलाओं कि स्थिति सुधर जायेगी |

पुरस्कार की हकदार तो ये भी है मगर इन्हें पूछेगा कौन
पुरस्कार की हकदार तो ये भी है मगर इन्हें पूछेगा कौन

जाकर उन महिलाओं से पूछिए जो अपने बच्चो का पेट भरने के लिए दिन भर मजदूरी करती है, या उन महिलाओं से पूछिए जिनका पति उनको मारता है पिटता है, या उन महिलाओं से जो रास्तों मे, घर मे अपने को सेफ नहीं समझती डर सताता है | इतने आंकड़े बनते जा रहे है महिलाओं के साथ अपराध के, कहीं अगला नाम उसका, उसकी बेटी का उसकी बहन का तो नहीं |

महिला दिवस मे मान सम्मान अधिकार की बात करके बात खत्म हो जाती है अगर सच मे महिलाओं को मान सम्मान सत्कार करना है राह चलती उन महिलाओं का कर लो, जिनको अकेले देख के हर कोई उसको अपनी जागीर समझने लगता है, उन महिलाओं को पूछ लो जो दिन रात तुम्हारे घर में खटती रहती बिना किसी शिकन के लाये उनको सही हक और अधिकार दे दो , उन लड़कियों को जिंदगी दे दो जिनके आने से पहले ही उसको भ्रूण में ही मार देते हो ……………. लिस्ट लंबी हो जायेगी शोर्ट में कहूँ तो हर महिला मान सम्मान अधिकार का हक रखती है |
इन दिवस को मनाना मेरे नज़रिये से तो फिजूल ही है सिर्फ एक दिन मान सम्मान देना प्रदर्शन करना कि माँ तुम ही हो, प्रिय तुम ही हो या महिलाओं तुम ही हो अरे हर दिन हर पल सब यूँ ही आदर सम्मान सत्कार दीजिए हर पल प्यार से जियो और जीने दो | मेरी नजर मे फिर इन दिखावा करने वाले दिवस कि जरूरत नहीं होगी |

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