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माँ तुम मेरी सहेली हो

पहचान
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खुशियों का सबब तुम से ही तो है
खुशियों का सबब तुम से ही तो है

माँ तुम अबूझ पहेली हो
माँ तुम मेरी सहेली हो
स्नेह की डोर से बंधी
ममता की तुम मूरत हो
हर लेती मेरे दुखो को
उस ख़ुदा की ही सूरत हो
मेरा सोता हुआ चेहरा भी
जाने कैसे पढ़ लेती हो
कितनी अलाओं बलाओं से
मुझ को रोज बचाती हो
निकलती हूँ जब भी घर से
नजर का टीका लगाती हो
भर के नए जज़्बे मुझ मे
हार को जीत बनाती हो,
दे के प्यारा सा एक बोसा
माथे पर तिलक लगाती हो,
नेह भरे स्पर्श से तुम
सारे दुःख हर जाती हो..
माँ तुम अबूझ पहेली हो
माँ तुम मेरी सहेली हो

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