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“सरफरोशी की तमन्ना”

पहचान
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ज़िंदा रहने के मौसम बहुत हैं मगर
जान देने के रुत रोज़ आती नहीं
हुस्न और इश्क दोनों को रुस्वा करे
वह जवानी जो खूँ में नहाती नहीं ………….

 मेरे जज़्बातों से इस कदर वाकिफ है मेरी कलम, मैं "इश्क" भी लिखना चाहूँ तो "इन्कलाब" लिखा जाता है.
मेरे जज़्बातों से इस कदर वाकिफ है मेरी कलम, मैं "इश्क" भी लिखना चाहूँ तो "इन्कलाब" लिखा जाता है.

कैफिआज्मी का लिखा ये गीत जब भी सुनती हूँ रोंगटे खड़े हो जाते है … आँखों में खुद ब खुद आंसू आ जाते है …. हमारा इतिहास गौरवशाली रहा है जहाँ रानी लक्ष्मी बाई जैसी वीरांगनाएँ रही है तो दूसरी और भगत सिंह जैसे युवा जिन्होंने बालपन से ही ये शपथ ले ली थी की देश को अंग्रेजो से आजाद करना है …….. भगत सिंह को उनके घर वाले अल्प आयु में ही विवाह बंधने में बंधना चाहते थे पर जिन्होंने देश को ही अपनी महबूबा मान लिया हो वो कैसे फिर किसी बंधन में बंध सकते थे १४ साल की ही उम्र में विवाह की तयारी होने लगी तो भगत सिंह लाहौर से भाग के कानपुर आ गए
कानपुर में उन्हें श्री गणेश शंकर विद्यार्थी का हार्दिक सहयोग भी प्राप्त हुआ। देश की स्वतंत्रता के लिए अखिल भारतीय स्तर पर क्रान्तिकारी दल का पुनर्गठन करने का श्रेय सरदार भगतसिंह को ही जाता है। उन्होंने कानपुर के ‘प्रताप’ में ‘बलवंत सिंह’ के नाम से तथा दिल्ली में ‘अर्जुन’ के सम्पादकीय विभाग में ‘अर्जुन सिंह’ के नाम से कुछ समय काम किया और अपने को ‘नौजवान भारत सभा’ से भी सम्बद्ध रखा।
1919 में रॉलेक्ट एक्ट के विरोध में संपूर्ण भारत में प्रदर्शन हो रहे थे और इसी वर्ष 13 अप्रैल को जलियांवाला बाग़ काण्ड हुआ । इस काण्ड का समाचार सुनकर भगतसिंह लाहौर से अमृतसर पहुंचे। देश पर मर-मिटने वाले शहीदों के प्रति श्रध्दांजलि दी तथा रक्त से भीगी मिट्टी को उन्होंने एक बोतल में रख लिया, जिससे सदैव यह याद रहे कि उन्हें अपने देश और देशवासियों के अपमान का बदला लेना है ।
शहीदे आजम भाग सिंह का एक खत अपनी पूजनीय पिता जी के नाम आप सब के साथ साझा कर रही हूँ |

पिताजी के नाम भगतसिंह का पत्र
घर को अलविदा

पूज्य पिताजी,
नमस्ते

मेरी जिंदगी मकसदे आला (ऊँचा उद्देश्य) यानी आजादी-ए-हिन्द के असूल (सिद्धांत) के लिए वक्फ (दान) हो चुकी है। इसलिए मेरी जिंदगी में आराम और दुनियावी खाहशात (सांसारिक इच्छाएँ) वायसे कशिश (आकर्षक) नहीं है।

आपको याद होगा कि जब मैं छोटा था तो बापूजी ने मेरे यज्ञोपवीत के वक्त ऐलान किया था कि मुझे खिदमते वतन (देशसेवा) के लिए वक्फ कर दिया गया है। लिहाजा मैं उस वक्त की प्रतिज्ञा पूरी कर रहा हूँ।

उम्मीद है आप मुझे माफ फरमाएँगे

आपका ताबेदार
भगतसिंह

भगत सिंह को उनकी दादी भागो वाला कहती थी | कितने भागो वाले थे वो जो कुछ कर गए अपने मातृभूमि के नाम अपने देश के नाम …. भगत सिंह २३ साल की उम्र में ही फांसी को हँसते हँसते चूम लिया सिर्फ देश के लिए …. मैंने सोशियल साईट में ही पढ़ा था कि

कभी युवराज के छक्कों,
तो कभी धोनी के बालों के लिए मर गए…

कभी करीना की मुस्कान पर,
तो कभी कटरीना के गालों के लिए मर गए…..

कभी विदेशी वीजा के लिए,
तो कभी हॉलीवुड वालों के लिए मर गए…..

सोचते होंगे कही बैठ कर भगत सिंह, सुख देव और राजगुरु….
कि यार हम भी पता नही किन ”सालो” के लिए मर गए….

हम अंधे कुएं की तरफ बढ़ रहे है और इसमें भी गर्व महसूस करते है ….

भगतसिंह ने कहा था , कि हिन्दुस्तान में केवल किसान और मजदूर के दम पर नहीं, जब तक नौजवान उसमें शामिल नहीं होंगे, तब तक कोई क्रांति नहीं हो सकती…..

देश फिर से गुलाम है …. गुलाम मानसिकता का ….. जहाँ पर तस्वीर दिखाई जाती है “भारत निर्माण” की और हकीकत में दो लाख बच्चे कुपोषण का शिकार है … जहाँ पर बात की जाती है “तरक्की” की और बेरोजगारी मुह बाय खड़ी है द्वारे पर …. जहाँ जश्न मनाया जाता है विदेशी सोच का और भारतीयता शर्मिंदा होती है चौक और चौराहे में … जहाँ अदना सा पकिस्तान अपने नापाक इरादे जाहिर करता है और दिल्ली स्वागत में होती है मेहमान नवाजी के लिए … फिर से देश को जरूरत है उन युवा शक्ति की जो दिखा दे अपने जोश और जज्बे से हम किसी से कम नहीं शेरो सा है दिल हमारा
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजू-ए-कातिल में है ।
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स्वतंत्रता दिवस की आप सभी को हार्दिक बधाई….

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