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मैं घर की बेटी
घर में ही परायी हो गयी
तू विदेश से आई
और घर भर की प्यारी हो गयी
एक वो समय भी था
मेरी बोली में सब वारे वारे जाते थे
मुझ पर गर्व था सबको इतना
गर्व से फूले नहीं समाते थे
गाँव देहात मेरा अपना अंगना था
शहर में भी रिश्ता जन्मो का था
मैं सीधी सरल और मीठी कहलाती थी
कोई दो बोल, बोल देतो उसको हो जाती थी
बाबा हिमालय की गोद में खेली
भारत माता की दुलारी थी
उत्तर से पूरब तक सबकी प्यारी थी
समय ने देखो कैसी करवट ली
अंग्रेजी का अधिकार हो गया है
मेरा ही घर आंगन मुझसे
अंजना बेगाना हो गया है
पूछा उसको जाता है
जिसको अंग्रेजी आती है
हिंदी तो कोने में खड़ी
चुपके चुपके नीर बहाती है
पहले आदर सत्कार होता था मेरा
अब दुत्कार दिया जाता है
विदेशी संस्कृति से प्रेरित हो के
एक उपकार मेरे उपर भी कर दिया है
अंग्रेजी ने साल का एक दिन
मेरे नाम सुरक्षित कर दिया है
साल में एक बार मेरा जन्मदिन
फिर भी बड़े धूम धाम से मनाया जाता है
१४ सितम्बर आते ही, हिंदी पखवाड़े में
मुझ को भी याद कर लिया जाता है
कैसी विडम्बना है ये मेरी कैसी बेबसी
अपने ही घर में हो गयी मैं परायी
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